ख़ौफ़ ही ख़ौफ़ है निगाहों में

ख़ौफ़ ही ख़ौफ़ है निगाहों में घुल रहा है ज़हर हवाओं में   घर जिन्हें बाँध कर न रख पाया क्या मिलेगा उन्हें गुफ़ाओं में   हर लहर से ये दीप जूझेंगे नेह जब तक है वर्तिकाओं में   हर क़दम देख-भाल कर चलना राहज़न भी हैं रहनुमाओं में   धर्म के नाम पर भी … Continue reading ख़ौफ़ ही ख़ौफ़ है निगाहों में